प्रोजेक्ट से जुड़ी शुरुआती जांच-पड़ताल

प्रॉपर्टी के नाम पर कमोबेश शत-प्रतिशत धोखाधड़ी के मामलों में देखा गया है कि खरीदार ने प्रोजेक्ट से जुड़ी शुरुआती जांच-पड़ताल की न तो जरूरत समझी और ना ही उसमें कोई रुचि दिखाई। खरीदारों ने केवल बिल्डर की बताई बातों और दिखाए ब्राशर पर भरोसा कर प्रॉपर्टी खरीद ली। यानी, लोग अपनी जीवन भर की कमाई को मकान खरीदने में लगा देते हैं, लेकिन खरीदारी में जरा-सी चूक उनके सपने बिखेर देती है।

 

मुंबई में कैंपा कोला सोसायटी

ऐसा ही कुछ मुंबई में कैंपा कोला सोसायटी में रहने वालों के साथ हुआ। लोगों ने पूरी पड़ताल किए बगैर मकान खरीदे जिन्हें बरसों बाद नगर निगम ने अवैध करार दिया और अब उन पर मकान खाली करने की तलवार लटक रही है। मुंबई की कैंपा कोला सोसायटी जैसे कई मामले देश के छोटे-बड़े शहरों में सामने आ चुके हैं। मुनाफा कमाने के लालच में कई बिल्डर मंजूरी से अधिक मकानों और टावर का निर्माण कर खरीदारों को झांसा देने से भी नहीं चूकते। और, खरीदार सपना साकार होने की भावनाओं में बह कर ठगा जाता है।

 

धोखाधड़ी से बचने का रास्ता

मुंबई की कैंपा सोसायटी मामले में अधिकांश खरीदारों ने वैधता जांचे बगैर फ्लैट खरीदे। यहां तक कि शुरू में लोगों ने बिल्डर से ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट भी नहीं मांगा। यह असावधानी ही उन्हें महंगी पड़ गई। आज देश भर के शहरों में बहुत से मकान बगैर ऑक्यूपेंसी या कंप्लीशन सर्टिफिकेट के बेचे जा रहे हैं। ये दोनों प्रमाण-पत्र बिल्डर को नगर निगम जैसे निकाय से मिलते हैं, जो इस बात की पुष्टि करते हैं कि इमारत का निर्माण सभी नियमों का पालन करते हुए अप्रुव नक्शे के आधार पर हुआ है और अब यह लोगों के रहने योग्य है। इनसे निर्माण के वैध होने की पुष्टि होती है। हालांकि, शहरी विकास के मामले में राज्यों और स्थानीय निकायों के नियम-कानून अलग-अलग होते हैं, लेकिन ऑक्यूपेंसी और कंप्लीशन सर्टिफिकेट जारी करने जैसी व्यवस्था तकरीबन सभी राज्यों और बड़े शहरों में है। प्रक्रिया में थोड़ा बहुत अंतर हो सकता है, लेकिन इनकी अहमियत सब जगह है।

 

ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट जरूरी

कई बार बिल्डर नक्शे में अप्रुव मकानों, टावर या फ्लोर से ज्यादा निर्माण कर डालता है। बगैर कंप्लीशन या ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट के निर्माण वैध होने की पुष्टि नहीं की जा सकती। इसलिए मकान खरीदने से पहले बिल्डर से कंप्लीशन और ऑक्यूपेंसी सर्टिफिकेट जरूर मांगे। इन प्रमाण-पत्रों के आधार पर ही किसी मकान में बिजली, पानी, जल-निकासी जैसी बुनियादी सुविधाएं मुहैया कराने का दावा किया जा सकता है। इसके बगैर प्रॉपर्टी की रीसेल में भी दिक्कतें पैदा हो सकती हैं। कोई इमारत आवासीय है या कमर्शियल इसकी पुष्टि भी इन्हीं प्रमाण पत्रों से होती है। इसके बगैर नगर निगम निवासियों पर जुर्माना या उन्हें बेदखल करने जैसी कार्रवाई कर सकता है। मुंबई के कैंपा कोला कंपाउंड के मामले में ऐसा ही हुआ।

 

कौनसे बैंक कर रहे फाइनेंस

किसी प्रोजेक्ट की वैधता और साख मापने का एक आसान तरीका यह देखना है कि वहां मकान खरीदने के लिए कौन-कौन से बैंक लोन दे रहे हैं। यदि किसी प्रोजेक्ट को इक्का-दुक्का एनबीएफसी (गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियां) ही लोन दे रही हैं, तो थोड़ी सावधानी बरतने की जरूरत है। अगर किसी प्रोजेक्ट को प्रमुख सरकारी और प्राइवेट बैंक फंड करने को तैयार हैं, तो इससे उसकी वैधता के दावे को मजबूत माना जाएगा।

 

कम कीमत के मकान की मांग

शहरों में कम कीमत के मकान की मांग बढ़ती जा रही है। इसके चलते 30 से लेकर 400 वर्ग गज की जमीन पर छोटे-छोटे बहुमंजिला फ्लैट बन रहे हैं और स्थानीय बिल्डर इन्हें धड़ल्ले से बेच रहे हैं। इस तरह के फ्लैटों की खरीदारी में खास तरह की सावधानी की जरूरत होती है। खरीदने से पहले अगर इन पर एहतियात नहीं बरती गई, तो बाद के समय में ये मुश्किल के सबब बन सकते हैं।

 

धोखाधड़ी के कई ऐसे मामले

इस तरह के फ्लैटों में धोखाधड़ी के कई ऐसे मामले सामने आए जिनमें बिल्डर ने एक ही फ्लैट को दो लोगों को अलग-अलग समय पर बेच दिया और बाद में गायब हो गया। इससे बचने का सबसे सशक्त उपाय है फ्लैट का कब्जा। कागजात की रजिस्ट्री से पहले फ्लैट के कब्जे को लेकर आश्वस्त होना जरूरी है।

कुछ मामलों में पाया गया कि बिल्डर ने मकान का निर्माण अधिक स्थान में कर लिया यानी भूखंड पर जितने स्थान पर भवन निर्माण की स्वीकृति थी उससे अधिक जगह में निर्माण कर लिया और अधिक निर्माण का सरकारी निकाय से कम्पाउंडिंग कराए बगैर खरीदार को बेच दिया। कुछ साल बाद निकाय की जांच में इसका खुलासा हुआ और निकाय ने खरीदार के पास मय ब्याज कम्पाउंडिंग की रकम की देनदारी का नोटिस भेजा। इससे बचने के लिए जरूरी है कि स्वीकृत नक्शा देखा जाए और अगर निर्माण अधिक स्थान में किया गया है तो विक्रेता से कम्पाउंडिंग का सर्टिफिकेट भी लिया जाए।

 

जायदाद के सौदे

छोटे से बने भूखंड पर अन्य कई मुद्दे शामिल होते हैं जैसे कि हाउस टैक्स, बिजली और पानी का कनेक्शन। कई राज्यों में छोटे भूखंड यानी एकल यूनिट वाली जमीन पर बने कई फ्लैट होने के बावजूद सिर्फ जमीन के नंबर पर हाउस टैक्स की पर्ची कटती है जिसकी देनदारी सभी फ्लैट वालों पर आती है। इससे हमेशा के लिए विवाद का एक जड़ बना रहता है। इसी तरह इस तरह के फ्लैट में कई बार बिजली और पानी के कनेक्शन को लेकर भी समस्या आती है। मकान अगर पुराना और रीसेल का हो तो मालिकाना हक के चेन के मूल दस्तावेज के साथ हाउस टैक्स, बिजली आदि के लिए भुगतान के प्रमाण के रूप में संबद्ध विभाग का प्रमाण पत्र जरूर संलग्न हो। एक खास बात, जायदाद के सौदे में कागजात पर भरोसा करना जरूरी है न कि किसी के भी वादे पर।

 

लैंड टाइटल किसके नाम

किसी अचल संपत्ति की वैधता के मामले में दो चीजें महत्वपूर्ण हैं। पहली, जिस जमीन पर इमारत बनी है या बनने वाली है, वह किसके नाम है। दूसरा, उस पर किया गया निर्माण नियमानुसार है अथवा नहीं। कई बार जमीन का मालिक कोई और होता है और उसे डेवलप कर प्रॉपर्टी कोई और बेच रहा होता है। इसलिए किसी प्रोजेक्ट में मकान खरीदने से पहले लैंड टाइटल का पता जरूर लगाएं। इस काम में आप किसी प्रॉपर्टी के जानकार वकील की मदद भी ले सकते हैं।

 

ब्राशर नहीं, अप्रूव्ड लेआउट मैप देखें

किसी मकान को खरीदते वक्त सबसे पहले बिल्डर से प्रोजेक्ट का अप्रूव्ड लेआउट मैप दिखाने को कहें। ज्यादातर अच्छे बिल्डर खुद ही प्रोजेक्ट का अप्रूव्ड लेआउट दिखाते हैं। इसे देखकर साफ मालूम हो सकता है कि योजना में कितने टावरों, कितनी मंजिलों और कितने मकानों के निर्माण की मंजूरी मिली है। सिर्फ ब्राशर पर यकीन करने से आप गलतफहमी के शिकार हो सकते हैं। ब्राशर में अक्सर बिल्डर चीजों को बढ़ा-चढ़ाकर दिखाते हैं। अप्रूव्ड लेआउट से ही आपको मकान का वास्तविक एरिया पता चलेगा और आप कारपेट, बिल्ड-अप और सुपर एरिया के नाम पर होने वाली ठगी से बच सकते हैं।